जो कण-कण में बसे, वही राम हैं: भारतीय दार्शनिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

Authors

  • डॉ स्मिता सिंह

Abstract

जो कण-कण में बसे, वही राम हैं यह सूक्ति भारतीय आध्यात्मिक चेतना और दार्शनिक परंपरा की एक गूढ़ अभिव्यक्ति है, जो अद्वैत वेदांत, भक्ति आंदोलन और लोक आस्था के अंतर्संबंधों को उजागर करती है। यह शोध पत्र राम के सार्वभौमिक, व्यापक और सर्वव्यापी स्वरूप की व्याख्या करता है, जिसमें राम न केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र हैं, अपितु प्रत्येक कण, प्रत्येक जीव और प्रत्येक चेतना में व्याप्त ब्रह्म तत्व के प्रतीक हैं। इस शोध में तुलसीदास, कबीर, रामानंद, और आधुनिक चिंतकों की व्याख्याओं को आधार बनाकर यह बताया गया है कि भारतीय चिंतन परंपरा में राम एक श्निजताश् नहीं, बल्कि समग्रता के भाव हैं। साथ ही, यह भी बताया गया है कि यह सूक्ति सांप्रदायिकता, भौतिकता और धार्मिक सीमाओं से परे एक वैश्विक मानवीय चेतना की उद्घोषणा करती है।
मुख्य शब्द- राम, अद्वैत वेदांत, भक्ति परंपरा, लोक आस्था, सार्वभौमिक चेतना, तुलसीदास, कबीर, भारतीय दर्शन, ब्रह्म तत्व

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Published

30-04-2025

How to Cite

डॉ स्मिता सिंह. (2025). जो कण-कण में बसे, वही राम हैं: भारतीय दार्शनिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 4(04), 312–316. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/723

Issue

Section

Research Paper