न्यायिक सक्रियता एवं श्रमिक कल्याण
Abstract
न्यायिक सक्रियता भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसने संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विशेषकर श्रमिक वर्ग, जो समाज का सबसे संवेदनशील और कमजोर तबका माना जाता है, उनके अधिकारों की सुरक्षा और कल्याण हेतु न्यायपालिका ने समय-समय पर सक्रिय हस्तक्षेप किया है। न्यायिक सक्रियता के अंतर्गत सर्वाेच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने श्रमिकों के जीवन, गरिमा, न्यूनतम वेतन, कार्यस्थल पर सुरक्षा, महिला श्रमिकों के अधिकार और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्याओं पर कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं। इस प्रकार न्यायपालिका ने श्रमिक कल्याण को केवल वैधानिक या नीतिगत दायरे तक सीमित न रखते हुए उसे मौलिक अधिकारों से जोड़कर एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान किया है। प्रस्तुत शोध में न्यायिक सक्रियता और श्रमिक कल्याण के अंतर्संबंध का अध्ययन करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि न्यायपालिका ने किस प्रकार सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने में सक्रिय भूमिका निभाई है।
मुख्य शब्द- न्यायिक सक्रियता, श्रमिक कल्याण, सामाजिक न्याय, मौलिक अधिकार, श्रम कानून, न्यूनतम वेतन, असंगठित क्षेत्र, महिला श्रमिक अधिकार
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