अरस्तू और सिकन्दर- एक वैचारिक विश्लेषण
Abstract
अरस्तू (384-322 ई.पू.) सभी समय के महानतम दार्शनिकों में गिने जाते हैं। अरस्तू को दार्शनिक प्रभाव के संदर्भ में देखा जाए तो केवल प्लेटो ही उनके समकक्ष हैं। अरस्तू के कार्यों ने विलम्बित प्रक्रिया से लेकर पुनर्जागरण तक सदियों के दर्शन को आकार दिया, आज भी उनका गहन, गैर-पुरातनपंथी अभिरुचि के साथ अध्ययन किया जाता है। एक विलक्षण शोधकर्ता और लेखक के रुप में अरस्तू ने बहुत सारे विचार दिए, जिनमें से लगभग 33 विचार आज भी अध्ययन किया जाता है। अरस्तू के मौजूदा लेखन में तर्क, तत्वमीमांसा और मन के दर्शन से लेकर नैतिकता, राजनीतिक सिद्धांत, सौंदर्यशास्त्र और अनुभवजन्य जीव विज्ञान जैसे मुख्य रूप से गैर-दार्शनिक क्षेत्रों तक कई तरह के विषय शामिल हैं, जहाँ उन्होंने विस्तृत पौधे और जानवरों के अवलोकन और विवरण में उत्कृष्टता हासिल की। इन सभी क्षेत्रों में, अरस्तू के सिद्धांतों ने रोशनी प्रदान की है, प्रतिरोध का सामना किया है, बहस को जन्म दिया है, और आम तौर पर एक स्थायी पाठक वर्ग की निरंतर रुचि को अभिप्रेरित भी किया है। अपनी व्यापक सीमा और दूरदर्शिता के कारण, अरस्तू का दर्शन आसानी से समाहित नहीं किया जा सकता।
मुख्य शब्द- प्राचीन राजनीतिक विचारक, अरस्तू, सिकन्दर, वैचारिक विश्लेषण
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