आर्थिक वैश्वीकरण और राज्य की संप्रभुता पर प्रभाव
Abstract
आर्थिक वैश्वीकरण 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तेजी से उभरने वाली एक वैश्विक प्रवृत्ति रही है, जिसने राष्ट्र-राज्यों की पारंपरिक संप्रभुता को गहरे स्तर पर प्रभावित किया है। पूंजी, श्रम, वस्तुओं, सेवाओं और सूचनाओं के निर्बाध अंतरराष्ट्रीय प्रवाह ने राष्ट्रीय सीमाओं की प्रासंगिकता को चुनौती दी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, और वैश्विक व्यापारिक समझौतों की भूमिका में वृद्धि ने नीति-निर्माण की प्रक्रिया में राज्य की भूमिका को सीमित कर दिया है। विशेषकर विकासशील देशों के संदर्भ में यह प्रभाव और भी स्पष्ट दिखाई देता है, जहाँ राष्ट्रीय आर्थिक निर्णय अंतर्राष्ट्रीय दबावों और शर्तों के अधीन होते हैं।
यह शोध-पत्र वैश्वीकरण की प्रक्रिया और उसके विविध आयामों का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट करता है कि आर्थिक वैश्वीकरण ने राज्य की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संप्रभुता पर किस प्रकार प्रभाव डाला है। साथ ही, यह अध्ययन उन संभावनाओं और रणनीतियों की भी खोज करता है, जिनके माध्यम से राष्ट्र अपनी संप्रभुता को सुरक्षित रखते हुए वैश्वीकरण के लाभों का समुचित उपयोग कर सकते हैं।
मुख्य शब्द - आर्थिक वैश्वीकरण, राज्य की संप्रभुता, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, वैश्विक शासन, विकासशील देश, सांस्कृतिक प्रभाव, आर्थिक निर्भरता।
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